Thursday 25 August 2011

Lets be the change

"समाज बदलो"…..

कीचड पर पत्थर न फेको,
कीचड तुम्हे भी मैला कर देगा,
यह कहावत पुराणी हुए दोस्तों,
नए दौर में कीचड में ही कमल खिलेगा….

जिस समाज में हम रहते, कीचड से कुछ कम नही,
हर इन्सान यहाँ वो करता, जो उसको लगता है सही..

सब दौड़ रहे हैं लगातार, मिले जितना धन लूट लो,
दूसरों की तरफ़ ऊँगली दिखाना छोड़ो, आगे बढो और " समाज बदलो…."


रोज सुबह जल्दी से ऑफिस पहुँचने की होड़,
इसी जूनून में ट्रैफिक के सारे नियम देते तोड़.
ऑफिस पहले पहुँच कर मेनेजर पर इम्प्रेशन जमाना,,
हमारी सहायता के लिए बनाये जो नियम, उन्हें ही तोड़ कर क्या मिलेगा, जरा बताना?

हम ग़लत भी करे तोः वोः है सही,
कोई सही भी करे तोः क्यों ग़लत बोलते हो भाई,

हर काम के लिए दूसरे पर अवलंबित होना छोड़, अपना काम ख़ुद कर लो,
एक से क्या फरक पड़ जाएगा, ऐसा मत सोचो, उठो और "समाज बदलो..."


सरकार ने रोड्स नही बनाये, पानी नही दिया, पूछो तोः हर इन्सान एक complaint बॉक्स ही खोल दे,
सरकार भी हम से एक है, हम से चुन कर आए, यह भूल गए, रोड में गद्दे हैं तोः ख़ुद क्यों न भर दे,
ऑफिस में इस से नही बनती, उस से बात नही करते, राजनीती खेलने से फुर्सत नही,
पढ़े लिखे लोगों का अखाडा बन गया ऑफिस, कारपोरेट ethics खो गए हैं कहीं,

आम आदमी बनके सब कुछ देखने से क्या फायदा, आगे बढ़ कर महान बनो,
इर्ष्या, गुस्सा, भेद भावः से कुछ न हासिल होगा, खुशी और प्यार का ताना बुनो,

यूँ ही चुप रहे तोः यह सुंदर धरती नही रहेगी , यारों संभालो,
इसी कविता से स्पूर्थी लो और आज से ही "समाज बदलो....".